Rajasthan Art Culture based top Questions

 Rajasthan Art Culture


राजस्थान में लोक देवता

मारवाड़ के पंच पीर रामदेव जी, गोगा जी, पाबु जी,हरभू जी, मेहा जी


राजस्थान में लोक देवियां

करणी माता देश नोक (बीकानेर) में इनका मंदिर है।



राजस्थान में सम्प्रदाय

1. जसनाथी सम्प्रदाय संस्थापक - जसनाथ जी जाट जसनाथ


राजस्थान में त्यौहार

चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाठ, श्रावण,


राजस्थान के मेले

(अ) राज्य के पशु मेले 1. श्रीबलदेव पशु मेला


राजस्थान में रीति -रिवाज

1. गर्भाधान 2. पुंसवन- पुत्र प्राप्ति हेतू


राजस्थान में प्रचलित प्रथाएं

राजपूतों में प्रचलित प्रथा जिसके


राजस्थान के आभूषण & वेश भूषा

1. सिर के आभूषण 1.शीशफूल 2. रखडी (राखड़ी)


राजस्थान की जनजातियां

1. मीणा निवास स्थान- जयपुर के आस-पास का


राजस्थान के दुर्ग

राजस्थान के राजपूतों के नगरों और प्रासदों


राजस्थान की प्रमुख संगीत गायन शैलियां

1. ध्रुपद गायन शैली जनक - ग्वालियर के शासक मानसिंह तोमर को माना जाता


राजस्थान में नृत्य

1. क्षेत्रिय नृत्य 1 बम नृत्य, 2 ढोल नृत्य 3 डांडिया नृत्य


राजस्थान में लोकनाट्य

होली के अवसर पर खेली जाती है। - ढोल व नगाडे।


वाद्य यंत्र

वाद्य यंत्रों को मुख्यतः चार श्रेणियों में


प्रमुख वादक

तबला वादकः- जाकिर हुसैन, पं. किशन महाराज


राजस्थान की चित्र शैलियां

नाथ द्वारा मेवाड़ रियासत के अन्र्तगत आता था


राजस्थान की लोक कलाएं

रेजी अथवा खादी के कपडे़ पर लोक देवता


राजस्थान की लोक गायन शैलियां

1. माण्ड गायन शैली 10 वीं 11 वीं शताब्दी में जैसलमेर क्षेत्र माण्ड क्षेत्र कहलाता था। अतः यहां विकसित गायन शैली माण्ड गायन शैली कहलाई। एक श्रृंगार प्रधान गायन शैली है। प्रमुख गायिकाएं अल्ला-जिल्हा बाई (बीकानेर) - केसरिया बालम आवो नही पधारो म्हारे देश। गवरी देवी (पाली) भैरवी युक्त मांड गायकी में प्रसिद्ध गवरी देवी (बीकानेर) जोधपुर निवासी सादी मांड गायिका। मांगी बाई (उदयपुर) राजस्थान का राज्य गीत प्रथम बार गाया। जमिला बानो (जोधपुर) बन्नों बेगम (जयपुर) प्रसिद्ध नृतकी "गोहरजान" की पुत्री है। 2. मांगणियार गायन शैली राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर जैसलमेर तथा बाड़मेर की प्रमुख जाति मांगणियार जिसका मुख्य पैसा गायन तथा वादन है। मांगणियार जाति मूलतः सिन्ध प्रान्त की है तथा यह मुस्लिम जाति है। प्रमुख वाद्य यंत्र कमायचा तथा खड़ताल है। कमायचा तत् वाद्य है। इस गायन शैली में 6 रंग व 36 रागिनियों का प्रयोग होता है। प्रमुख गायक 1 सदीक खां मांगणियार (प्रसिद्ध खड़ताल वादक) 2 साकर खां मांगणियार (प्रसिद्ध कम्रायण वादक) 3. लंगा गायन शैली लंगा जाति का निवास स्थान जैसलमेर-बाडमेर जिलों में है। बडवणा गांव (बाड़मेर) " लंगों का गांव" कहलाता है। यह जाति मुख्यतः राजपूतों के यहां वंशावलियों का बखान करती है। प्रमुख वाद्य यत्र कमायचा तथा सारंगी है। प्रसिद्ध गायकार 1 अलाउद्दीन खां लंगा 2 करीम खां लंगा 4. तालबंधी गायन शैली औरंगजेब के समय विस्थापित किए गए कलाकारों के द्वारा राज्य के सवाईमाधोपुर जिले में विकसित शैली है। इस गायन शैली के अन्तर्गत प्राचीन कवियों की पदावलियों को हारमोनियम तथा तबला वाद्य यंत्रों के साथ सगत के रूप में गाया जाता है। वर्तमान में यह पूर्वी क्षेत्र में लोकप्रिय है। 5. हवेली संगीत गायन शैली प्रधान केन्द्र नाथद्वारा (राजसमंद) है। औरंगजेब के समय बंद कमरों में विकसित गायन शैली।


राजस्थान में हस्तकला

सोना, चांदी ज्वैलरी 1. स्वर्ण और चांदी के आभूषण


राजस्थान की छतरियां

1. गैटोर की छतरियां नाहरगढ़ (जयपुर) में स्थित है।


राजस्थान के महल

जयपुर स्थापना - 18 नवम्बर, 1727 को,


राजस्थान की हवेलियां

सुराणों की हवेलियां - चुरू


राजस्थान के प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थल

जवाहर कला केन्द्र-जयपुर स्थापना - 1993 ई. इस संस्था द्वारा सर्वाधिक सांस्कृतिक


राजस्थानी भाषा एवं बोलियां

राजस्थानी भाषा की उत्पति शौरसेनी गुर्जर अपभ्रंश से मानी जाती है।

राजस्थान के आभूषण & वेश भूषा

आभूषण

1. सिर के आभूषण

1.शीशफूल 2. रखडी (राखड़ी) 3 बोर 4 टिकड़ा 5.मेमन्द

2. माथा/ मस्तक के आभूषण

1 बोरला 2 टीका 3 मांग टीका 4 दामिनी 5 सांकली 6फीणी 7 टिडी भलको 8 बिन्दी

3. नाक के आभूषण

1 बेसरि / बसेरी 2 नथ 3 चोप 4 लोंग 5 चूनी 6लटकन 7 वारी 8 नथ

4. कान के आभूषण

1 झुमका 2 टाॅप्स 3 कर्णफूल 4 सुरलिया 5 भूचारिया6 टोटी 7 पाटी सूलिया 8 बाली 9 ओगणिया 10मोरफवर 11 मुरकी

5. दांत के आभूषण

1 रखन 2 चूप

6. गले के आभूषण

1 झालर 2 कंठी 3 मटरमाला 4 ठूस्सी 5 मोहरण 6चम्पाकली 7 हालरो 8 हंसली 9 पंचलड़ी 10 तिमणिया11 तुलसी 12 पोत 13 मोहनमाला 14 चंदनहार 15मादलिया 16 बजंटी 17 मंडली 18 हंसहार 19 हमलो20 खुंगाल्ली 21 बलेवड़ा 22 हांकर 23 सरी 24कंठमाला

7 कलाई /हाथ के आभूषण

1 गजरा 2 गोखरू 3 चूडियां 4 चूडा 5 हथफूल 6बगडी 7 पूचियों 8 पाटला 9 कंगन 10 छल्ला 11 कड़ा12 कंकण 13 भोकड़ी

8 अंगुली के आभूषण

1 दामणा 2 हथपान 3 छडा 4 बीदिया 5 अंगुठी 6बींठी 7 मूंदड़ी 8 कुडक 9 नथड़ी/ भंवरकडी

9 बाजू के आभूषण

1 बाजू 2 बाजूबंद 3 भुजबंध 4 अणत 5 तकथा 6 बट्टा7 हारपान 8 आरत 9 टड्डा

10 कमर के आभूषण

1 कण्डोर/कंदोरा 2 तागडी 3 करथनी 4 कणकती 5सटका - लहंगे के नेफे में अटकाकर लटकाया जाने वाला आभूषण

11 पैर के आभूषण

1 कडा 2 नवरी 3 आंवला 4 पायजेब 5 पायल 6हिरणामैन 7 लछणे 8 टणका 9 नूपुर 10 बिछुडी 11बिछिया 12 फोलरी 13 जोधपुरी जोड़ 14 घुंघरू 15झांझरिया 16 रमझोल

वेश भूषा

1. पगड़ी

पगडी मेवाड़ की प्रसिद्ध है।

पगड़ी को पाग, पेंचा व बागा भी कहते है।

विवाह पर पहनी जाने वाली पगड़ी मोठडा पगडी कहलाती है।

श्रावण मास में पहनी जाने वाली पगड़ी लहरिया कहलाती है।

दशहरे के अवसर पर पहने जाने वाली पगड़ी मदील कहलाती है।

दीपावली के अवसर पर पहने जाने वाली पगड़ी केसरिया कहलाती हैं

फूल पती की छपाई वाली पगडी होली, के अवसर पर पहनी जाती है।

रियासती पगडि़यां

1 जसवंत शाही 2 चुड़ावत शाही 3 भीम शाही 4उदयशाही 5 मानशाही 6 राठौडी 7 हम्मीर -शाही 8अमरशाही 9 स्वरूपशाही 10 शाहजहांनी 11 राजशाही

2. अंगरखी

शरीर के ऊपरी भाग में पहने जाने वाला वस्त्र है।

अन्य नाम - बुगतरी, अचकन, बण्डी आदि।

3. चौगा

सम्पन्न वर्ग द्वारा अगरखी के ऊपर पहने जाने वाला वस्त्र है।

तनजेब व जामदानी के चैगे- गर्मियों में पहने जाते है।

4. जामा

शादी- विवाह या युद्ध जैसे विशेष अवसरों पर घुटनों तक जो वस्त्र पहना जाता था जामा कहलाता है।

5. आत्मसुख

सर्दी से बचाव के लिए अंगरखी पर पहना जाने वाला वस्त्र है।

सबसे पुराना आत्मसुख सिटी पैलेस (जयपुर) में सुरक्षित है।

6. पटका

जामा के ऊपर पटका/ कमरबंद बांधने की प्रथा थी,जिस पर तलवार या कटार लटकाई जाती थी।

7. ओढ़नी

शरीर के निचले हिस्से मे घाघरा ओर ऊपर कूर्ती,कांचली के बाद स्त्रियां ओढली ओढ़ती है।

लूंगडी - मीणा जाति से संबंधित है।

पोमचा- पीली व गुलाबी जमीन वाली विशेष ओढनी बच्चे के जन्म के समय महिलाएं ओढती है।

लहरिया - तीज-त्यौहार के अवसर पर महिलाओं पहने जाने वाली ओढनी है।

कटकी - अविवाहित बालिकाओं की ओढनी है।

ओढ़नी के अन्य प्रकार

1ज्वार भांत की ओढ़नी 2 ताराभांत की ओढ़नी 3 लहर भांत की ओढ़नी 4 केरीभांत की ओढनी

तारा भांत की ओढ़नी- आदिवासी स्त्रियों की लोकप्रिय ओढ़नी है।

8. ठेपाड़ा / ढेपाडा

भील पुरूषों द्वारा पहनी जाने वाली तंग धोती है।

9. सिंदूरी

भील महिलाओं द्वारा पहने जाने वाली लाल रंग की साड़ी है।

10. खोयतू

लंगोटिया भीलों में पुरूषों द्वारा कमर पर बांधे जाने वाली लंगोटी को कहते है।

11. कछावू

लंगेटिया भील महिलाओं द्वारा घुटने तक पहना जाने वाला नीचा धाघरा जो प्रायः काले और लाल रंग का होता है।

12. चीर, चारसो, दुकूल


ये स्त्रियों की वेशभूषांऐ है।

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